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HPM Chemicals & Fertilizers Ltd.

 

HPM Agro

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बजट २०१७: क्या कृषि क्रांति की गूँज भारत के खेतों तक पहुँच पाएगी?

माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की अर्थशास्त्र की पुस्तक कहती है “भारत एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है|” साहित्यिक निबंध और उपन्यास अक्सर कहते हैं “असली भारत तो गाँव में बसता है”| मगर पिछले बीस सालों के आंकड़े ये भी बताते हैं की गाँव से पलायन करने वालो की संख्या लगातार बढ़ी है| गाँव के आँगन सूने होते जा रहे हैं और बड़े शहरो में यही आबादी अब माचिस की डिब्बी जैसे घरों में रह रही है| एक अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री के तौर पर किसी भी कृषि बजट का आंकलन करने से पहले इन तथ्यों का अवलोकन करना अनिवार्य है ख़ास तौर से तब, जब विमुद्रिकरण के बाद कोई बजट आये और उसमें कृषि क्रांति का नारा भी छिपा हो| २०१७ का कृषि बजट ख़ास है क्यूंकि डिजिटल अर्थव्यस्था के सूत्रपात के बाद इस बजट में भारत के कृषि उद्योग को नयी विश्व अर्थव्यवस्था और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखा गया है|

हर बजट में योजनाये बनती हैं और अक्सर विफल भी होती है, मगर इस बार ई-कॉमर्स के आने के बाद कृषि मंडियों में उम्मीद बंधी है| इस साल कृषि ऋण की सीमा बढ़ा कर दस लाख करोड़ की गयी है| यकीनन अच्छी खबर है, उस से भी ज्यादा अच्छा प्रस्ताव ये है की कृषि ऋण संस्था से जुड़े तिरेसठ हज़ार नाबार्ड केन्द्रों को डिजिटल बनाया जाएगा और उन्हें मुख्य बैंकिंग सेवाओं से जोड़ा जाएगा| डिजिटल होने का अर्थ ही पारदर्शी होना है, २०१७ के कृषि बजट में डिजिटल पारदर्शिता की और समर्थ कदम बढ़ाये गए हैं जो किसानो को ज़रूर आशावान बनायेंगे| किसानो को ऋण लेने में आसानी होगी, खेती के लिए आवश्यक चीज़ें जैसे बीज और फ़र्टिलाइज़र वो आसानी से खरीद पायेंगे| वो अपनी ऊर्जा और समय अब एच पी एम जैसे समर्पित संस्थानों के साथ व्यतीत कर पायेगे जो किसी भी ख़ास मिटटी के लिए फ़र्टिलाइज़र बनाने में विशेषज्ञता रखते हैं और अच्छी उपज के साथ साथ मिटटी के संरक्षण से जुडी बारीकियों को भी जानते हैं| हाल ही के दिनों में मृदा संरक्षण और कृषि की सततता का विषय राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पटलों पर बड़ी प्रमुखता के साथ उठाया गया है|२०१७ के कृषि बजट में भी इस बात पर ख़ास जोर दिया गया है


कृषि उद्योग में लगा कितना काला धन बाहर आया – इसकी सही परख भी इस कृषि बजट के बाद ही होगीकृषि बजट के प्रस्तावों को सरकार की डिजिटल भुगतान नीति से जोड़ कर देखना आवश्यक है, पिछले साल सरकार ने ई-कृषि मंडी की घोषणा की, अभी तक भारत में तीन सौ से ज्यादा ई-मंडिया तीन सौ टन से ज्यादा का व्यापार अपने दायरे में ले चुकी हैं| खरीद और विक्रय के सटीक और सही आंकड़े आने वाले समय में सरकार को सही नीति निर्धारण करने में काफी मदद करेंगे ऐसी उम्मीद हैं| सामान्य स्थिति में बिचोलिये काले धन के दम पर कृषि उत्पादों के दाम बढ़ाते या घटाते रहते थे| कल तक ये बिचोलिये कृषि उत्पादों के बाज़ार को काले धन की समानान्तर अर्थव्यवस्था की मदद से अपने ढंग से चला रहे थे| सब्जिया महँगी थी, कृषि उत्पाद महंगे थे मगर भारत का किसान गरीब था और ऋण में डूबकर आत्महत्या जैसे विनाशक कदम भी उठा रहा था| विमुद्रीकरण, ई-मंडिया और डिजिटल पेमेंट की बाध्यता अब बिचोलियों के हौंसले पस्त करेगी और किसान को सीधे उनके ग्राहक से जोड़ेगी, इस तरह किसानो को उनकी उपज का पूरा लाभ मिलेगा और ग्राहक भी कृषि उत्पादों की काला बाजारी और महंगाई से बच जायेंगे| एक अर्थशास्त्री के तौर पर हम ये भी कह सकते हैं की ई मंडियों से मिला ये अतिरिक्त कर सरकार बदहाल कृषि व्यवस्था की सिंचाई के लिए इस्तेमाल कर सकती है और अच्छे परिणाम भी ला सकती है| सिंचाई के दृष्टिकोण से २०१७ के बजट में भी दो महत्वपूर्ण घोषणाये की गयी हैं, नाबार्ड के दीर्घावधि सिंचाई फण्ड को २०,००० हज़ार करोड़ रूपये और दिए गए है जिस से जल का संरक्षण किया जा सकेगा और सूखे की स्थिति में कृषि पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से किसानो को राहत दी जा सकेगी| इसी क्रम में लघु सिंचाई को प्रोत्साहन देने के लिए पांच हज़ार करोड़ रूपये अतिरिक्त देने की घोषणा की गयी है| २०१७ के कृषि बजट में सरकार ने गागर तो भर दी है अब ये गागर कृषि विकास के सागर को कहाँ तक ले जा पाएगी ये देखना दिलचस्प होगा|


कृषि बजट २०१७ प्रमुख बिन्दु

इस बजट में कृषि और जुडी हुई व्यवस्थाओं के लिए कुल १,८७,००० करोड़ रूपये निर्धारित किये गए हैं|

फोस्फोरस और पोटाश (पी और के) फ़र्टिलाइज़र पर दी जा रही सब्सिडी को आंशिक रूप से बढ़ा कर ७०,००० करोड़ रूपये किया गया है|

कृषि ऋण के लिए दस लाख करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है|

कृषि सम्बंधित मनरेगा योजनाओं के लिए अडतालीस करोड़ का आवंटन|

फसल बीमा योजना का दायरा बढ़ा कर क्षेत्रफल का दायरा चालीस प्रतिशत किया गया और कीमत ९००० करोड़ तक बढाई गई|

नाबार्ड को लघु अवधि सिचाई फण्ड के लिए ५००० करोड़ रूपये का आवंटन|

पी एम जी एस वाई में 19,000 + 8,000 = 27,000 करोड़ रुपयों का आवंटन

ई-नाम की पहुँच अब ५८५ बाजारों तक बढाई जायेगी|

दूरगामी परिणामो की तैयारी और तात्कालिक लाभ के लिए प्रयासरत


दुनिया भर के अर्थशास्त्री मानते हैं की अगले तीस सालों में उच्च स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाए, स्वचालित रोबोट आर्म्स और कृषि के लिए मृदा संरक्षण तीन ऐसे क्षेत्र है जो सबसे ज्यादा रोज़गार पैदा करेंगे| सोच किसी हद तक सही भी है| इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और सूचना प्रोधोगिकी जैसे रोज़गारपरक क्षेत्र अब चरम पर पहुँच चुके हैं| मांग और आपूर्ति की अर्थव्यस्था में स्वास्थ्य और कृषि दो ऐसे क्षेत्र है जिनकी मांग कभी कम नहीं होगी क्यूंकि दुनिया की आबादी लगातार बढ़ रही है| इसी सोच के अंतर्गत २०१७ के बजट में सरकार ने कृषि विज्ञानं केन्द्रों की पहुँच बढ़ाने का प्रस्ताव भी दिया है, करीब छह सौ से ज्यादा कृषि विज्ञानं केंद्र अब देश भर में स्थानीय मिटटी की जांच करेंगे और और उनकी सेहत के आधार पर मृदा स्वास्थ्य कार्ड भी जारी करेंगे | वैसे इस के लिए एच पी एम जैसे मृदा और फ़र्टिलाइज़र विशेषज्ञों की भी सलाह ली जा सकती है जिनके पास आप के खेत की मिटटी को परखने का अनुभव है| एच पी एम के विशेषज्ञ ये भी जानते हैं की किस तरह के फ़र्टिलाइज़र के इस्तेमाल से आप पैदावार बढ़ा सकते हैं वो भी मिटटी की क्षमता को ज्यादा नुक्सान पहुंचाए बिना| एच पी एम जैसे संस्थान उपलब्ध सर्वोत्तम वैज्ञानिक तकनीको की मदद से आपकी फसलों के लिए फ़र्टिलाइज़र का निर्माण करते हैं| मिटटी की उपज को लम्बे समय तक कैसे सहेज कर रखा जाए इस विषय में उनकी शोध लगातार जारी है| एच पी एम उस सोच के साथ फ़र्टिलाइज़र का निर्माण करते हैं जहाँ आज की फसल में सबसे बेहतर उपज मिले और आने वाली फसलों के लिए भी खेत की मिटटी खुद का पुनर्निर्माण करती रहे| कृषि बजट २०१७ भी इस तरह के प्रयासों को बढ़ावा दे रहा है, आधिकारिक तौर पर उन्होंने शुरुआत कर दी है और इस से एच पी एम जैसे बहुत से कटिबद्ध संस्थानों को इस से काफी मनोबल मिलेगा|

द२०१७ का कृषि बजट दूरगामी परिणामो और तात्कालिक राहत दोनों मोर्चों पर काफी ऊर्जा का संचार कर रहा है| ये नीतिया अर्थव्यस्था के दूरगामी सकारात्मक परिणामों के लिए काफी अच्छी हैं और इनमें वैज्ञानिक सोच का समावेश कृषि उद्योग की ओर निवेशको की रूचि बढ़ा सकता है|

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